"आओ चलें गाँव की ओर"
"आओ चलें गाँव की ओर"
बड़े बड़े घरानों के,
शहरों के बन्द मकानों में ।
गुजारते कैसे सांझ और भोर,
आओ चलें गाँव की ओर ।।
शहर भी साथ निभाता है,
सबको अपना बनाता है ।
नौकरी और व्यवसाय देकर,
सम्मान भी दिलाता है ।।
समय समय पर दे अवकाश,
कहता चलो गांव की ठौर ।
गर्मी की छुट्टियाँ मिली हैं,
आओ चलें गाँव की ओर ।।
गाँव है अपना कितना प्यारा,
चहुं ओर दिखे हरा भरा ।
प्रकृति के नजदीक रहकर,
मन भी तो है निखरा निखरा ।।
मान सम्मान बड़ों को देते,
छोटों पर भी करते गौर ।
स्मृतियों को मन में रखकर,
आओ चलें गाँव की ओर ।।
सूर्योदय से दिन शुरु कर,
आंचल सिर रख जल दे नारी ।
मेहमानों का स्वागत भी करे,
जल से भरे बारी फुलवारी ।।
कर्तव्य पथ पर चले सदा वो,
पकड़ चले आँचल का छोर ।
मान सम्मान सब कुछ जहाँ हो,
आओ चलें गाँव की ओर ।।
तुलसी, नीम, गाय और धरती,
सभी माता ही होती हैं ।
मातु पिता हो भगवन सम,
ऐसी परम्परा होती है ।।
कुल, परम्परा, मान- मर्यादा,
रीति रिवाज का अब भी शोर ।
सबका निर्वहन हम भी करने,
आओ चलें गाँव की ओर ।।
