"बसन्त ऋतु का सपना "
"बसन्त ऋतु का सपना "
शिशिर आए या आए हेमंत,
ऋतुराज तो है बसंत ।
समय बीत जाता है क्यों,
क्यों होता है इसका अंत ।।
बसंत आने का सपना,
हर कोई देखता है वर्ष भर ।
ठंडी की सिकुड़न में ये तो,
देता है आनंदित कर ।।
ठिठुरती हुई धरा का आकर,
करता है ये अंत ।
शिशिर आए या आए हेमंत,
ऋतुराज तो है बसंत ।।
फूलों वृक्षों में भी मादक,
सपने आने लगते हैं ।
चतुर्दिशाओं में भी कैसी,
मस्ती छाने लगती है ।।
हर किसी में इस ऋतु का,
यूँ ही दिखता है आनंद ।
शिशिर आए या आए हेमंत,
ऋतुराज तो है बसंत ।।
कोयल से लेकर भौंरे तक,
भी उन्मादित हो जाते हैं ।
कभी कूके करें गुंजार,
अपने सपने सजाते हैं ।।
सभी के सपने हों पूरे,
कभी ना हो सपनों अंत ।
शिशिर आए या आए हेमंत,
ऋतुराज तो है बसंत ।।
