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Seema Singh

Others

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Seema Singh

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"बसन्त ऋतु का सपना "

"बसन्त ऋतु का सपना "

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शिशिर आए या आए हेमंत,

ऋतुराज तो है बसंत ।

समय बीत जाता है क्यों,

क्यों होता है इसका अंत ।।


बसंत आने का सपना,

हर कोई देखता है वर्ष भर ।

ठंडी की सिकुड़न में ये तो,

देता है आनंदित कर ।।


ठिठुरती हुई धरा का आकर,

करता है ये अंत ।

शिशिर आए या आए हेमंत,

ऋतुराज तो है बसंत ।।


फूलों वृक्षों में भी मादक,

सपने आने लगते हैं ।

चतुर्दिशाओं में भी कैसी,

मस्ती छाने लगती है ।।


हर किसी में इस ऋतु का,

यूँ ही दिखता है आनंद ।

शिशिर आए या आए हेमंत,

ऋतुराज तो है बसंत ।।


कोयल से लेकर भौंरे तक,

भी उन्मादित हो जाते हैं ।

कभी कूके करें गुंजार,

अपने सपने सजाते हैं ।।


सभी के सपने हों पूरे,

कभी ना हो सपनों अंत ।

शिशिर आए या आए हेमंत,

ऋतुराज तो है बसंत ।।



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