"बसंत में फूल और फूल पर भौंरे"
"बसंत में फूल और फूल पर भौंरे"
बसंत में खिलते हैं जो फूल ,,
भौंरे तो मंडराया करते हैं ।
फूलों की खुशबू से जाके पूछो ,,
आकर्षण कहाँ से लाया करते हैं ।।
बसंत में खिलते ...............।।
तरह तरह के फूल खिले हैं,,
लाल, पीले, हरे, नीले हैं ।
कैसी ये अभिव्यक्ति देते ,,
इन्हें देख हम जी लेते हैं ।।
कुशलता इनकी मन में रखकर ,,
इन्हें नहीं तोड़ा करते हैं ।
बसंत में खिलते हैं जो फूल,,
भौंरे तो मंडराया करते हैं ।।
भौंरे भी हैं कई तरह के,,
यहाँ वहां घूमा करते हैं ।
निज अनुभूति से असंतुष्ट हो वह,,
जीवन को निराश करते हैं ।।
करो ना कर्म कोई तुम ,,
अन्त समय बस पछताते हैं ।
बसंत में खिलते हैं जो फूल,,
भौंरे तो मंडराया करते हैं ।।
सृष्टि भी है बसंत सी ये ,,
सुख दुख आते जाते हैं ।
इच्छानुसार जीवन जी कर हम ,,
सम्बन्धों को निभा जाते हैं ।।
भोग कर लो तुम त्यागपूर्वक,,
साथ ना कुछ जाया करते हैं ।
बसंत में खिलते हैं जो फूल,,
भौंरे तो मंडराया करते हैं ।।
फूलों की खुशबू से जाके पूछो,,
आकर्षण कहाँ से लाया करते हैं ।।
