"मधुमास में प्रेम "
"मधुमास में प्रेम "
आ गयी बसन्त की ऋतु ,,
प्रियतम तू भी अब आ जा।
प्रकृति भी है बाहें फैलाए ,,
मधुमास में प्रेम तू सिखा जा ।।
खेतों में सरसों फूली ,,
पुष्प वृक्षों पर लहराए ।
नव पल्लव साथ लिए ,,
गीत गाती हैं लताएं ।।
कुंजन कोयल की सुन सुन कर ,,
मन ये गुंजारित कर जा ।
प्रकृति भी है बाहें फैलाए,,
मधुमास में प्रेम तू सिखा जा ।।
सर्व सुखद ऋतु होने से ,,
इसे ऋतुराज कहते हैं ।
अद्यतन काल में इसे ,,
प्रेम का मास कहते हैं ।।
रोज, प्रपोज, किस, आलिंगन ,,
चॉकलेट,टेडी,वैलेन्टाइन तू मना जा ।
प्रकृति भी है बाहें फैलाए ।
मधुमास में प्रेम तू सिखा जा ।।
गर कभी अड़चन पड़ जाए ,,
तो तू परेशान ना हो ।
फूलों की खुशबू पवन से भेज ,,
मन भ्रमर सा हैरान ना हो ।।
तुम ही मन तुम ही जीवन ,,
तू रोम रोम बस जा ।
प्रकृति भी है बाहें फैलाए,,
मधुमास में प्रेम तू सिखा जा ।।
आ गयी बसन्त की ऋतु,,
प्रियतम तू भी अब आ जा ।
प्रकृति भी है बाहें फैलाए,,
मधुमास में प्रेम तू सिखा जा ।।
