"बसंत में प्रिय मिलन "
"बसंत में प्रिय मिलन "
बसंत का मौसम ऐसा हो,
और प्रियतम हो खुद से दूर ।
बसंत में प्रिय मिलन की चाह ,
मिलने को करती मजबूर ।।
प्रिय वियोग में मन की दशा,
ले जाती है किस ओर हमें ।
सर्वत्र खुशियाँ होने पर भी ,
दिखता है सिर्फ वियोग हमें ।।
भोग, वासना इसे ना समझो ,
मिलता रहे प्रेम भरपूर ।
बसंत में प्रिय मिलन की चाह ,
मिलने को करती मजबूर ।।
एक हूक हृदय में उठती है ,
चुभती है जैसे वो शूल ।
मेरे प्रियतम आना जल्दी,
जाना ना मुझको तुम भूल ।।
विस्तृत है सब तुम बिन अब तो ,
मेरी आंखो के आप ही नूर ।
बसंत में प्रिय मिलन की चाह,
मिलने को करती मजबूर ।।
कैसे करूँ शुक्रिया तेरा ,
हे बसंत प्रियतम तू लाया ।
सारी खुशियाँ देकर जिसने ,
मेरे मन को है हर्षाया ।।
निर्निमेष हो तुझे निहारूं ,
मेरे चेहरे का तू नूर ।
बसंत में प्रिय मिलन की चाह,
कभी होगी पूरी जरूर ।।
बसंत का मौसम ऐसा हो,
और प्रियतम हो खुद से दूर ।
बसंत में प्रिय मिलन की चाह,
मिलने को करती मजबूर ।।
