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Seema Singh

Others

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Seema Singh

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"बसंत में प्रिय मिलन "

"बसंत में प्रिय मिलन "

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बसंत का मौसम ऐसा हो,

और प्रियतम हो खुद से दूर ।

बसंत में प्रिय मिलन की चाह ,

मिलने को करती मजबूर ।।


प्रिय वियोग में मन की दशा,

ले जाती है किस ओर हमें ।

सर्वत्र खुशियाँ होने पर भी ,

दिखता है सिर्फ वियोग हमें ।।


भोग, वासना इसे ना समझो ,

मिलता रहे प्रेम भरपूर ।

बसंत में प्रिय मिलन की चाह ,

मिलने को करती मजबूर ।।


एक हूक हृदय में उठती है ,

चुभती है जैसे वो शूल ।

मेरे प्रियतम आना जल्दी,

जाना ना मुझको तुम भूल ।।


विस्तृत है सब तुम बिन अब तो ,

मेरी आंखो के आप ही नूर ।

बसंत में प्रिय मिलन की चाह,

मिलने को करती मजबूर ।। 


कैसे करूँ शुक्रिया तेरा ,

हे बसंत प्रियतम तू लाया ।

सारी खुशियाँ देकर जिसने ,

मेरे मन को है हर्षाया ।।


निर्निमेष हो तुझे निहारूं ,

 मेरे चेहरे का तू नूर ।

बसंत में प्रिय मिलन की चाह,

कभी होगी पूरी जरूर ।।


बसंत का मौसम ऐसा हो,

और प्रियतम हो खुद से दूर ।

बसंत में प्रिय मिलन की चाह,

मिलने को करती मजबूर ।।


          


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