जिंदगी और मोड़
जिंदगी और मोड़
हूँ कब से वहीं, उसी मोड़ पर..........!!
हूँ कब से वहीं, उसी मोड़ पर,
तुमने छोड़ा था जहां, मुँह मोड़ कर
हमने तो वफा, दिल से किए
बेवफा तुम ही निकले, दिल तोड़ कर
हूँ कब से वहीं, उसी मोड़ पर
प्यार के फर्ज़ मैं तो, निभाता गया
रूठने पे तेरे, तुझको मनाता गया
पीछे भागा मैं तेरे, सब कुछ छोड़ कर
फिर भी तुमने रुलाया, मुझे तोड़ कर
हूँ कब से वहीं, उसी मोड़ पर
थी जो फरमाइशें तेरी, पूरी करता गया
तुझको पल पल, मैं अपना बनाता गया
दिल में क्या था तेरे, क्या करता जानकर
धोखे तुमने दिये है, मुझे, गैर मानकर
हूँ कब से वहीं, उसी मोड़ पर
जो साथ चलने का वादा, तुमने किया
उस डगर को सुगम मैं, बनाता गया
चुने है मैंने काँटे, ठोकरें खा कर,
खिच लिए कदम तुमने, मुझे छोड़ कर
हूँ कब से वहीं, उसी मोड़ पर
तुमने छोड़ा था जहां, मुँह मोड़ कर
हूँ कब से वहीं, उसी मोड़ पर
तुमने छोड़ा था जहां, मुँह मोड़ कर
हमने तो वफा, दिल से किए
बेवफा तुम ही निकले, दिल तोड़ कर
हूँ कब से वहीं, उसी मोड़ पर।
