STORYMIRROR

Kratika Agnihotri

Abstract

4  

Kratika Agnihotri

Abstract

हमारा गांव

हमारा गांव

1 min
412

लौट चलें शहर से गांव की ओर,

पेड़ों की ठंडी-ठंडी छांव की ओर।


वहां कल-कल बहता पानी है,

नानी दादी के किस्से कहानी है।


निश्चल मन और प्रेम की वाणी है,

गांव में बाप दादाओ की निशानी है।


शहरों ने रोजी के नाम पर छला है,

रोटी ऐसी मिली कि खाकर जला है।


कतरा-कतरा ही जीवन मिला है,

दर्द में होंठों को हमने तो सिला है।


खेत खलिहान और पशु बागान,

कम होकर ज्यादा लगता सामान।


रास्ते कच्चे-पक्के दिल थे सच्चे,

दिन थे वह अच्छे हम थे बच्चे।


मेरा गांव भी नहीं था पहले ऐसे,

अब लगता कुछ-कुछ शहर हो जैसे।


शहरों की खूब खाक छान लिया,

लोगों को हमने अच्छे से जान लिया।


हमारा गांव हमें सबसे है प्यारा,

मिट्टी में बीता बचपन हमारा।


लौट चलें शहर से गांव की ओर,

शहरों में सिर्फ दिखावे का है ठौर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract