सामाजिक अभिशाप
सामाजिक अभिशाप
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बाल विवाह निकृष्ट रिवाज है,
जन-जन को उठानी आवाज है।
समाज पर भद्दा अभिशाप है,
यह विवाह नहीं यह पाप है।
खेलने की उम्र में बंधन में न बांधना,
दो मासूमों को जीते जी न मारना।
पढ़ने की उम्र में बोझ न डालना,
रस्मों के नाम पर सूली न चढ़ाना।
अब इन कुरीतियों को तोड़ना होगा,
शिक्षा से इनका नाता जोड़ना होगा।
बच्चों के हौसले उड़ान भरने की ताक में हैं,
क्यों आप उनके पर कतरने की फिराक में हैं।
समाज के इस कलंकित रिवाज को मिटाना,
शिक्षा के उजियारे से
राह दिखाना।
मासूमों को जीने का हक़ है,
उनके पढ़ने खेलने का वक्त है।
जनमानस में जागरूकता लाओ,
समाज से ऐसी परंपरा हटाओ।