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Kratika Agnihotri

Abstract

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Kratika Agnihotri

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बसंत

बसंत

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धरती सुनहरी सोने जैसी हो जाती,

सरसों धान की फसलें पक जाती।


मौसम में गुलाबी ठंडक है आती,

लगता धरती पीली चुनर लहराती।


बसंती आभा आंखों को लुभाती,

पुरवइया भी बसंती हवा है बहाती।


बसंत की रंगत से मन हर्षाए,

फगुनाहट की आहट से फाग गाएं।


ऋतुओं का राजा ऋतुराज कहलाए,

फूल वृक्ष भी बसंत देख मुस्काए।


पत्ता-पत्ता हर फूल अब इठलाए,

आसमां धरती पर रंगीनियत छाए।


भंवरे कोयल बागों में मंडराने लगे,

पपीहा मैना मधुर गीत गाने लगे।


बसंत प्रकृति से आतिथ्य स्वीकारे,

प्रकृति का आंचल लगे लहराने।


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