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Awadhesh Saxena

Abstract

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Awadhesh Saxena

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–दीवारें बात करतीं हैं

–दीवारें बात करतीं हैं

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सुनो खामोश रहकर क्या दिवारें बात करतीं हैं ।

इधर सुनना उधर कहना यही दिन रात करती हैं ।


जहां गम की फसल पकती उमड़ आतीं भरी आंखें,

जमीं दिल की जहां तपती वहीं बरसात करतीं हैं ।


लड़ाई आपसी करके,मिटीं पूरी तरह से पर,

नई कौमें सिरे से फिर नई शुरुआत करतीं हैं ।


जिन्हें हम ही बनाते हैं, वो सरकारें अगर दें कुछ,

हमारे हक हमें देतीं, नहीं खैरात करतीं हैं ।


जरा सी देर क्या कर दी उन्हीं के काम करने में,

बिना ही बात वो हम पर बहुत शुबहात करतीं हैं ।


खुदा हर शै में शामिल है, नजर पर वो नहीं आता,

हवाएं हर जगह रहकर, यही इस्बात करतीं हैं ।


कहो ’अवधेश’ कुछ या फिर, लबों को बंद रहने दो,

तुम्हारी नम हुईं आंखें, बयां जज़्बात करतीं हैं ।



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