गीता के संदेश
गीता के संदेश
अध्याय 1 -
सोच ही हो यदि गलत तो, है समस्या जिंदगी ।
बुद्धि बल उपयोग हो तो, है तपस्या जिंदगी ।
अध्याय 2 -
ज्ञान है तो हर समस्या, हल अभी हो जाएगी ।
युद्ध की ये जीत ही तो, शांति सुख ले आएगी ।
अध्याय 3 -
मार्ग समृद्धि का है, स्वार्थ निज को त्यागना ।
पर हितों के कर्म में ही, धर्म को पहचानना ।
अध्याय 4 -
कर्म प्रभु को हों समर्पित, है यही बस प्रार्थना ।
मन नहीं पनपे जरा भी, कर्म फल की चाहना ।
अध्याय 5-
मन अहंकारी नहीं हो, चल अनंतानंद ले ।
भक्ति मय वातावरण में, नाम हरि सानंद ले ।
अध्याय 6 –
नित्य जुड़ कर चेतना से, शक्ति संचय साधना ।
शत्रु कोई सामने हो, बेहिचक हो मारना ।
अध्याय 7 -
सीख जीवन में मिली जो, ला उसे उपयोग में ।
व्यर्थ ही मत काट जीवन, रोग में या भोग में ।
अध्याय 8 -
आत्म बल मजबूत रख कर, आप अपना छोड़ मत ।
एक ईश्वर मान ले बस, मोह माया जोड़ मत ।
अध्याय 9 -
जो मिला आशीष प्रभु से, भूल मत जाना कभी ।
नाम जप प्रभु पाद महिमा, गीत भी गाना कभी ।
अध्याय 10 -
दस दिशाओं में प्रकृति के, हर सृजन में हरि रहें ।
रूप ईश्वर देख सब में, कृष्ण अर्जुन से कहें ।
अध्याय 11 -
सत्य तो होता नहीं है, कुछ अधिक या कम कभी ।
जानना हो सत्य को तो, कर्म अर्पित कर सभी ।
अध्याय 12 -
उच्च से भी उच्चतर जो, लीन मन उसमें रहे ।
कर्म योगी ज्ञान योगी, भक्ति योगी भी कहे ।
अध्याय 13 -
मोह माया छोड़ मानव, जोड़ मन भगवान से ।
मोक्ष की हो कामना बस, कर्म कर हर ध्यान से ।
अध्याय 14 -
दृष्टि इतनी साफ जिसका, जिंदगी से मेल हो ।
प्रश्न कितने भी जटिल हों, हल बताना खेल हो ।
अध्याय 15 -
प्राथमिकता जिंदगी में, देव दर्शन की रहे ।
वास हो अपना जहां पर, ज्ञान की गंगा बहे ।
अध्याय 16 -
मानता हो जानता हो, जग बुरा या फिर भला ।
कर्म अच्छे ही करे पर, स्वर्ण सत सांचे ढला ।
अध्याय 17 -
शक्ति शाली है वही जो, धारता अधिकार है ।
चुन सके सुख शांति मन की, आत्म बल से प्यार है ।
अध्याय 18 -
अंत में बस मोक्ष की ही, ईश से है कामना ।
विश्व गुरु ब्रह्मांड स्वामी, कृष्ण की है वंदना ।