STORYMIRROR

Baman Chandra Dixit

Abstract

4  

Baman Chandra Dixit

Abstract

लौट आया हूँ

लौट आया हूँ

1 min
255


वादा जो था लौटने का लौटा आया हूँ मैं,

दरवाजे से अपनी लौट आया हूँ मैं।।


बुलावा उनका ही था हर बार के तरह

बिन बुलाया सा मगर लौट आया हूँ मैं।।


कह भी दुँ अगर यकीन दिलाऊँ किसे

खामोस थे वो मायूस लौट आया हूँ मैं।।


चाह मर चुकी थी फिर भी चाहा मैने

चाहत नहीँ थी देख लौट आया हूँ मैं।।


आज तो ठहर जाओ बोलते जरूर थे

ठहराव नहीँ थी देख लौट आया हूँ मैं।।


ठिकाना मेरा ठिकाना लग चुका देख

ठिकाने से अपनी लौट आया हूँ मैं।।


लौटा कर अपनी नादाँ नाराज़गियों को 

आख़री दस्तक़ के साथ लौट आया हूँ मैं।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract