वीर कुंवर सिंह
वीर कुंवर सिंह


वीर बाबू कुंवर सिंह की
रणभेरी जब गूँज उठी थी,
धरती काँप गई थी ऐसी
गगन हिला था तब कुछ ऐसा
स्वतंत्रता के यज्ञ दहके थे
अग्नि मशाल तब जल उठे थे
बूढ़े तन में जोश थी ऐसी
जवानी की तरह थी तेवर जैसे
रण में बढ़ते आगे आगे
कभी दुश्मन से जो न हारे
अस्सी बरस की आयु थी फिर भी,
शत्रु दलों को चीर गिराए
अंग्रेजों की सत्ता डोली,
भय से वे थर-थर थे काँपे
जब रण में वह सिंह गरजता,
शत्रु शत्रु के छूटे छक्के
गंगा जल से धोकर खड्ग को,
शपथ स्वराज की जिसने ली थी
माँ की माटी को बचाने,
कुर्बानी तक दे दी थी अपनी
वीर शहीदों की गाथाओं में,
अमर हमेशा रहे नाम तुम्हारा
भारत न भूले कभी वो दिन
दी थी जो कुर्बानी वीर कुंवर सिंह