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Madhavi Solanki

Action Others

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Madhavi Solanki

Action Others

अंजान सी है जिंदगी ...

अंजान सी है जिंदगी ...

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अंजान सी है ये ज़िन्दगी कुछ अनगिनत ख्वाबों से,

अंजान सा है मन अनचाही मुश्किलों से,

अंजान सा है कोई कागज़ बीना किसी शब्द के,

कोई तो आए, कभी उन कोरे कागज़ में अपनी ज़िन्दगी के पल लिखे

अंजान है कोई, किसी से जिंदगी से शायद इसीलिए दूर दूर रहता है,

खामोश रहता है , बात करने से रुख मोड़ता है शायद कोई उलझन में है,

या फिर अंजान है मेरे व्यक्तित्व से, कभी कभी पागल भी समझता है,


पागल कहना भी सही है, मेरी बाते ही कुछ ऐसी है

लेकिन फिर भी अंजान है वो मेरे विचारों से, मेरी कलम से,

वो पढ़ता तो बखूबी है मेरी कहानियां लेकिन अंजान है वो मेरी बातों से,

जो हमेशा ही में इन कविता के ज़रिए उन से साझा होती है,

अंजान है ये जिंदगी मेरे दिल से, जो हमेशा ही मेरे सपनों के लिए धड़कता है,

अंजान है मन उन सारे प्रयासों से जो हर पल सिर्फ एक ही ओर नज़र बनाएं रखता है,

अंजान है ये दुनिया खुद के व्यक्तित्व को पहचानने से

और लगे रहते है दूसरों को जानने के लिए, क्या यहीं ज़िंदगी का असूल है

की सिर्फ़ एक नज़र देख के उनकी पूरी जिंदगी जान सकते है,

ये तो समुंदर को एक नज़र देख के उसकी गहराई का अंदाज लगाना हुआ,

वास्तविकता तो कुछ अलग ही होती है, अंजान है लोग इन बातों से


वैसे तो खुली किताब की तरह है मेरी जिंदगी, हर वक्त सभी पढ़ते है चेहरा मेरा,

लेकिन अंजान है वो मेरी मुश्किलों से, मेरे डर से, मेरी कोशिशों से,

वैसे तो सब लिखा है मैंने कोरे कागज़ में, लेकिन अंजान है ये दुनिया

उस किताब से या उन पन्नों से जो बखूबी पढ़ा है सबने, लेकिन जिया ये मैंने,

सिर्फ़ समझा है मैंने, दूसरों के लिए वो सिर्फ़ कहानी है,

लेकिन सब अंजान है की वो तो जिन्दगी है मेरी,

 “अंजान है जिंदगी, अंजान जिंदगी” मेरी हकीकत से, मेरे ख्वाबों से, मुझ से,

सिर्फ मेरी डायरी है जो बखूबी वाकिफ है मेरी जिंदगी से, बाकी सब अंजान है …



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