तुम बिन
तुम बिन
सीख रही बस तुम बिन चलना,
इन पथरीली राहो में,
यादो की तेरी बना एक कुटिया,
तुम बिन रहना सीख रही हूँ,
भूल गए तुम वो राहे,
संग संग जिन पर चलते थे,
तुम बिन , तेरे ही संग ,
बस मैं तो जी रही हूँ,
रचा बसा ली मैंने एक दुनिया,
बस अपने मन मंदिर में,
सजा कर तेरी ही मूरत,
तेरे संग ही जी रही हूँ,
हाँ, ये पल बिन तेरे है,
पर उन्हें भी अपना बना रही हूँ,
अच्छा लग रहा है,
तेरे अहसासों को जीना,
तुम बिन तुझमे ही होना,
हे मेरे कान्हा, तेरे बिन बस राधा बन जी रही हूँ,
रम कर कुछ तुझमे ही, बस तेरी हो रही हूँ।।