श्रम
श्रम
जीवन ये खुशियों का फल, श्रम ही एक सीढ़ी है।
लगन से जो चलता चला, विजय सामने ही खड़ी है।।
कितनी विपदा तुझे सताती, पथ भी तेरे रोके जो।
जीत गया जो तू खुद से, श्रम का वृक्ष सजाता वो।।
मत रोकना तू वेग को अपने, पथ को सदा सजाते चलना।
फूल मिले या शूल मिले, सदा दिल से मुस्कुराते चलना।।
मत रोना कंटको से तुम, अधकार से भी तू न डरना।
बन दिवाकर तुझे ही तो, प्रकाश सा भी चमकना।।
श्रम से जो सींचा है जीवन, अनगिनत पुष्प खिल जायेंगे।
ऐसे पुष्प है वह जीवन के, जो न कभी भी मुरझाएंगे।।