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Arunima Bahadur

Action

4  

Arunima Bahadur

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अज्ञान और मानव

अज्ञान और मानव

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जो जाना निरीह जीवो ने,

क्या हमने वो पहचाना है।

प्रकृति की वैभवता को,

क्या कभी पहचाना है।


मानव के स्वार्थ कर्मो से,

वसुधा भी तो सिसक रही।

प्रेम की पौध न जाने क्यों,

 क्यारी में न पनप रही ।


प्रकृति का प्रचंड रूप देख,

पशु भी देखो अकुलाया है।

मानव ने न कुछ समझने का,

मिथ्या अभिमान बनाया है।


आज मानव के कर्मों से,

विनाश के बादल छाए है।

मानव ने तो न देखे ये बादल,

पशु समझदारी बनाए है।


प्रकृति संग बड़े चलो,

आज पशु सिखला रहे।

अपनी वाणी में देखो,

वो विनाश विनाश चिल्ला रहे।।


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