शहीद की पत्नी का सावन
शहीद की पत्नी का सावन
रास्ते में विधवा वीर वधू को देख
नववधू ठिठक गयी
यह विधवा मेरे रस्ते में
क्यों आकर ऐसे अटक गई।
तुम यहाँ कहाँ पर भटक चली
क्यूँ कर बतलाओ ओ भोली
यह नववधुओं की तीज सखी
यह नहीं अभागन की टोली।
उसकी घबराहट देख वो बोली
बहन न ऐसे घबराओ
मुझको अपशकुनी न समझो
मत अपने मन को समझाओ।
मैं सहयोगिनी उस सैनिक की
जो मातृभूमि को चूम गया
तुम सबका सावन बना रहे
वो मेरा सावन भूल गया।
मेरे जूड़े का वो गुलाब
अब फसल खेत की कहला
ता
मेरे सुहाग की कुर्बानी से
यहाँ तिरंगा लहराता।
तुम सबकी राखी और सुहाग
वो मंगल सूत्र से जोड़ गया।
तुम सबकी चूड़ी खनकाने को
मेरी चूड़ी तोड़ गया।
मेरी चुनरी के लाल रँग को वो
कुछ ऐसे चुरा गया।
उसकी सारी लालामी सब
तुम्हरी चूनर में सजा गया।
उनकी यादों को मंदिर में
आज सजाने आयी हूँ
मेरा बेटा भी सैनिक हो
अम्बे को मनाने आयी हूँ।
आँचल में छुपा कर घर रखा
तो वीर कहाँ से आयेंगे
जब मुश्किल से टकराएंगे
तब अभिनन्दन बन पाएंगे।