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Sumita Sharma

Abstract

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Sumita Sharma

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शख्सियत

शख्सियत

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हवा है मखमली मौसम भी थोड़ा जाफरानी है

हमें हर बात दिल की, क्या कहें कैसे बतानी है।

सलीका आईना है परवरिश के फ़र्क़ का जानो

तरीका नर्म है अपना ,और आँखों में भी पानी है।


फ़र्क़ इतना हमारी और तुम्हारी शख्सियत में है

तुम्हारा ज़ामदनी है,हमारा ख़ानदानी है।

तुम्हारे तन्ज़िया लहजे पे हँस दें दिल ने ठानी है

हमारे सब्र की भी एक ये उम्दा निशानी है।


रईसी है नई , लहज़े में ये गर्मी बताती है

तुम्हे हर चीज़ की क़ीमत ज़माने को बतानी है।

ये न समझो जवाबों को हमें देना नही आता

हमारी परवरिश और शख्सियत ही ख़ानदानी है।


हमारा ज़िक्र हो महफ़िल में मां का नाम न आये

ये माँ की तरबियत है या के कोई धूपदानी है।

यहाँ माँ बाप भी बच्चों के घर में हो गए मेहमाँ

निभाता कौन अब दुनिया में हम सी ख़ानदानी है।


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