सहर
सहर
रात इतराती रही
स्याही पे अपनी यूँ ही
सहर ने हँस के कहा
कोख़ में सूरज है मेरी
आपदा पस्त हुई
तंगदिल ताकत को लिए
रब ने भी हँस के कहा
तू भी तो मूरत है मेरी
रात इतराती रही
स्याही पे अपनी यूँ ही
सहर ने हँस के कहा
कोख़ में सूरज है मेरी
आपदा पस्त हुई
तंगदिल ताकत को लिए
रब ने भी हँस के कहा
तू भी तो मूरत है मेरी