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Sumita Sharma

Tragedy

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Sumita Sharma

Tragedy

अन्तरदाह

अन्तरदाह

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विधाता अब स्त्री मत बनाना

गर्भ में मर जाना बेहतर था।


वो साँप ज़रूर था,ज़हर नहीँ उगला,

मरहम के बदले में ,प्यार दिया।

वो शेर था ,घायल था माँसाहारी था,

पट्टी बाँधी तो चाट लिया।


ये गाय ,बैल ,बकरी घोड़े 

चौपाये थे पर अच्छे थे,

दिखने में भले जानवर थे

पर इंसानों से अच्छे थे।


अच्छा करने के बदले में

दुर्दांत मौत यूँ दे डाली

वो दीपशिखा सी बाला थी

कोयले की परिणिती दे डाली।

क्या दोष था उस बेटी का 

जिसकोे दोपाये ने मार दिया।


अब गर्भपात के निर्णय में 

लड़कों की भी तैयारी हो,

हर चौराहे पर हो अलाव

और लकड़ी की जगह

बलात्कारी हो ।


क्यों जले मोमबत्ती,

जब कि वो उजियारे की साथी ,

अत्याचारी जलते होते,

तो सबक की होती थाती।


वो चौपाये और वो अबोल

अब सच्चे पाए जाते हैं,

अब इंसानों के चोले में

जानवर पाए जाते है।


अब डिग्री को पीछे छोड़ो

और शस्त्र की भाषा अपनाओ

वो निर्भर भी थी,सुंदर भी

पर नर पशुओं से हार गई

कितने सपने आँखो में थे

पर छोड़ उन्हें मंझधार गयी।


माँ जन्म अगर देना मुझको

तो शस्त्र चलाना सिखलाना

अब राक्षस रहते नर तन में

तुम सँस्कार मत सिखलाना।




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