STORYMIRROR

Sumita Sharma

Tragedy

4  

Sumita Sharma

Tragedy

मैं नदी हूँ

मैं नदी हूँ

1 min
387

अवसान के अंतिम चरण से मिल रही हूँ

निर्झरा थी कीच में अब ढल रही हूँ

धृष्ट मानव के करम की त्रासदी हूँ

अब व्यथित हूँ, मर रही हूँ मैं नदी हूँ।


पर्वतों की गोद में था मायका

कलकलों से थी रवानी भी मेरी

दुग्ध की धारा के जैसा रूप था

अमृतोपम था हमारा ज़ायका।


मंदिरों की घण्टियों का नाद था

मन्त्र थे और आरती का थाल था

हूँ अकेली और बस कुछ मछलियाँ

रूप है बदला हैं घेरे नालियाँ।


माँ के जैसा था कभी सम्मान मेरा

तब था जीवनदायिनी भी मेरा

लालचों के, चक्र की यूँ साक्षी हूँ

अब व्यथित हूँ मर रही हूँ मैं नदी हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy