बचपन की 15 अगस्त की यादें
बचपन की 15 अगस्त की यादें
आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हमको वह नजारा याद आ गया ।
जो हमारे बचपन का था बहुत प्यारा सा हिस्सा।
जब क्लास में आकर मैडम ने हमारा नाम लिया और बोला तुम सेक्रेटेरियरट की मेंन परेड में भाग लोगी।
कक्षा में से दो को ही चुना था और हमारा नाम आया।
हमने भी जमकर इन का फायदा उठाया।
देशभक्ति का जज्बा मन में हर्षाया
मन खुशी से नाच ऊंचा उठा कि हम भी कुछ कर रहे हैं देश की परेड में भाग ले रहे हैं
3 साल तक बराबर परेड में भाग लेते रहे ।
लेजियम डंबल बराबर करते रहे। परेड का लुत्फ़ उठाते रहे।
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा गाते रहे और मानते रहे।
दो अपने को आम में से खास मानने का मजा उठाते रहे।
जिंदगी का यह बहुत प्यारा हिस्सा रहा हमारा बचपन
जो बेफिक्री का जमाना है बचपन।
स्वार्थ और चिंताओं से दूर निस्वार्थ मस्ती भरा है मेरा बचपन।
वह रेत में घर बनाना, कंचे खेलना, पकड़म पकड़ाई, सितोलिया क्या-क्या न खेला हमने।
कभी कच्ची कोड़ी कभी पक्की कोड़ी बन के सब खेल खेले हमने।
बहुत नाच बहुत मस्ती जिंदगी असलियत में बचपन में ही जी है हमने ।
बचपन में तो मां बाप की डांट भी मीठी लगती है।
ना कोई चिंता ना कोई फिकर बेफिक्री की जिंदगी जो होती है।
बाद में तो उन पर सभ्यता का मूलम्मा जम जाता है
खेल खेल में पढ़ाई के सबक भी हमने सीख लिए थे।
तो मां पापा भी हमारे हमसे खुश रहते थे।
उनके मुंह की खुशी देखकर हम बहुत और खुश हो जाते थे।
2,4 काम उनके और कर खेलने की इजाजत पाए जाते थे।
कुछ नीति नियम के साथ भरपूर मस्ती के साथ।
खेल-खेल में बचपन में मां-बाप ने जो प्यारी-प्यारी बातें सिखाई
जो बचपन के सबक सिखाएं वह आज भी हमको याद आते हैं।
और हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाते हैं
प्यारे दोस्त जैसे भैया के साथ।
टोपले भरे दोस्तों के साथ।
जो मस्ती जो बचपन हमने गुजारा है।
आज जब हम उसकी बातें करते हैं।
तो सब बच्चों के आंखों में चमक आ जाती है।
सब नाती पोते बोलते हैं नानी आपका बचपन तो
अवेसम था फुल ऑफ जॉय ऐसा हमारा क्यों नहीं है।
मैंने कहा अब तुम्हारे मम्मी पापा बहुत ज्यादा सोफिस्टिकेटेड हो गए हैं
उनको मिट्टी में खेलने वाला कपड़े गंदे करने वाला कोई भी गेम पसंद नहीं आता है।
जबकि हमारे गेम में तो कपड़े गंदे होते ही थे।
पर हमको उसकी फिक्र भी नहीं थी।
तुम मोबाइल गेम इंडोर गेम वाले बच्चे हो।
हमारे पास तो आउटडोर गेम ही खेलने के रहते थे।
कभी-कभी गुड़िया की शादी भी रचा देते थे।
और उसका खाना भी कर लेते थे ।
बहुत मजा आता था।
ऐसा प्यारा था हमारा बचपन।
आज भी जब बचपन के दोस्तों से बात करते हैं।
वापस वही समय आंखों के सामने आ जाता है ।
ऐसा लगता है हम बचपन में जी रहे हैं।
बुढ़ापा भी बचपन का ही एक रूप होता है।
मगर उसमें बेफिक्री नहीं होती है।
जो बचपन में होती है।
बचपन सबसे न्यारा होता है।
जो निश्चल निस्वार्थ और मासूम होता है।
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।
बचपन के वे दिन।
जो थे बहुत सुनहरे वे दिन।