वो आख़िरी ख़त
वो आख़िरी ख़त
यार सुनो तुम ना, जल्दी से जा के, मेरे दिल का हाल सबको सुना दो।
आ जाऊंगा मैं, उसके इस दुनिया में आने से पहले,
ये यक़ीन जा के मेरी अजन्मी बिटिया को दिला दो। माँ से कहना,
खाना वक़्त पर खाता हूँ, और उसकी दुआओं को भी
तकिये तले रख के सोता हूँ। चित्रा की राखी का, तोहफ़ा भी मुझे याद है।
और बाबा की देशभक्ति के क़िस्से, तो यहां सबको मुँह ज़ुबानी याद है। सुनो,
इस सबके बाद, तुम्हें छत पे जाना होगा,
वोह जो मेहँदी रचे हाथ लिए बैठीं हैं, उनका माथा चूमना होगा।
फिर उनसे मेरा तुम हाल कह देना -
और आँसु उनकी आँख के, मेरी पलकों पे रख देना।
उनसे कहना कि मैंने कोशिश की,
मैंने कोशिश की, कि इस देश पर आंच न आने दूँ।
मैंने कोशिश की, कि इन लाखों परिवारों की नींद न खुलने दूँ.
मेरी टूटती हर सांस ने कोशिश की, कि ये संग्राम ना होने दूँ।
मैं सच कहता हूँ, मैंने बहुत कोशिश की,
कि मैं घर वापस आ सकूँ -
ये सब जाकर तुम मेरे अपनों से कहना।
और सुनो मेरे कुछ सवाल भी पूछना, सवाल पूछना तुम,
इन सियासी पहरेदारों से, इन सोफे पर बैठे बेरोज़गारों से,
और इन प्राइवेट कम्पनीज़ के चौकीदारों से
पूछना कि अगर आँख के बदले आँख, जान के बदले जान,
और फौजी के बदले फौजी छीनोगे।
तो क्या आने वाला कल सुनेहरा बना पाओगे,
क्या बापू की गंवाई जान का क़र्ज़ चुका पाओगे
क्या मेरी बिटिया मुझसे मिला पाओगे,
क्या मेरी माँ के आंसू पोंछ पाओगे,
या फिर मेरे बाबा का सहारा बन पाओगे ?
इन सवालों के जवाब तुम उनसे मांगना।
9अब वो ख़त उस फौजी के परिवार वालों को मिलता है
तो वो उससे उसका परिचय पूछते हैं,
कि तुम कौन हो, कहाँ से आए हो और
क्या चाहते हो ? ख़त कहता है।)
मैं दर्द हूँ हर उस वार का, जो उस फौजी ने सहा है
मैं अश्क हूँ उस आँख का, जो एक माँ की आँख से बहा है।
मैं डर हूँ उसके भयानक सपने का, -
और परिमाण हूँ उसके हक़ीक़त में बदलने का।
उसकी बीवी की उम्मीद सा सिंदूर और चूड़े की चमक हूँ मैं
वो अभी अभी जो जन्मी है, उसकी बिटिया की धड़क हूँ मैं।
उसकी बहन की राखी का जवाब भी लाया हूँ
मैं उसके बाबा के बुढ़ापे की लाठी बन आया हूँ।
थोड़ा थक़ गया हूँ, मुझे बैठ जाने दो
क्यूंकि मैं सीधा कश्मीर से आया हूँ,
देखो उसकी आख़िरी बची कुछ सांसे लाया हूँ,
मैं तुम्हारे वास्ते उस फौजी के टुकड़े चुन लाया हूँ।