सब छोड़ जाते हैं..
सब छोड़ जाते हैं..
बेतहाशा शोर
हर तरफ
बावजूद इसके
सन्नाटा
जब अंदर तक
पसर जाता है
इस कदर कि
अपनी ही चीख़
सुनाई नहीं देती
फैली हो रौशनी
चारो तरफ
बावजूद इसके
काली नागिन सी उतर आती है
रात अपने अंदर
और धड़कने
अशांत हों
नींद भी ओझल
हो जाती है
मानो उसने भी
साथ छोड़ दिया
ऐसे समय में..!
हो भी क्यूँ ना..?
सब छोड़ जाते हैं
ऐसे समय में..।