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Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy

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Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy

उम्मीद

उम्मीद

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कितनी उम्मीद करता था।

वो सुनेगा उदासियों को महसूस करेंगा।

तुम अकेले नहीं....कह कर।

कंधे पर हाथ रख यह बात करेंगा।।


पर हाथ उम्मीदों के नाउम्मीदी ही आई।

अभी बचपना हैं........

सबने फिर एक बचकानी उम्मीद बंधाई।।


जिंदगी के इस तूफ़ान को,

कैसे नहीं समझा।

जिंदगी के भेद को,

कैसे नहीं परखा।

बच्चा है ...अभी।

सोच से बच्चा ही रह गया।

जिस वक्त ने बढ़ा किया।

वो बात ना समझ सका।


लेकिन अब..........

बहुत कुछ पहचान कर जान चुका हूँ।

उम्मीदों से काफी हद तक खबरदार हुआ हूँ।

अकेला .......था।

और अकेला ही रहेंगा।

अगर यह सोचकर सोचता ही रहेंगा।

उम्मीदों की तरह हर वक्त टूटता ही रहेंगा।

जब तक तू अपने साथ नहीं चलेंगा।

उम्मीदों का फिर कैसे हम सफर बनेंगा।


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