जिंदगी
जिंदगी
जिंदगी तू कितना दर्द देती है
जब तुझे कोई दवा मिलती नही
तू आकर हाँथो में कलम देती है
धीरे से आकर मुस्कुरा जाती है
फिर कानों में आकर फुसफुसा जाती है
अपने गहरे राज़ खोल जाती है
जिंदगी तू कितना दर्द देती है
किसी पे खुश हो जाये तो
ये जहाँ उसपे वार देती है
किसी का सब कुछ छीनकर
रोज़ नया इम्तिहान देती है
जिंदगी तू कितना दर्द देती है
क्यूँ साँसों का मोल देती है
जो भी तेरे मन मे वो सब बोल देती है
रिश्तों की डोर नाज़ुक होती है
क्यूँ तू इन्हें उल्छे माज़े सी छोर देती है
जिंदगी तू कितना बदनाम कर देती है
जिंदगी तू कितना दर्द देती है।
