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VanyA V@idehi

Tragedy

4  

VanyA V@idehi

Tragedy

खेत खलिहान

खेत खलिहान

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आज है सूखा सूना गाँव कंसारे ,

बताओ कहां गए खलिहान हमारे ?


खलिहानों के ऐसे गायब होने से,

रह गए हम थ्रेशरों के सहारे।


दांव चलती थी खलिहानों में,

बैल भर लेते थे पेट विचारे।


खूब भ्रमण कर खलिहानों में,

मन भर लेते थे फसल सहारे।


खरबूज,तर्बूज की वारी बोते थे,

मछली पकड़ लाते थे मछुआरे।


खलिहान से अन्न सर पै ढोते थे,

भूसा ढोते थे बैलगाड़ी के सहारे।


बैलों के मुंह मुसीका बांध देते थे,

पूंछ ऐंठवा बैल चलते थे विचारे।


कभी कभी वर्षा से सड़ जाते थे,

जब खलिहान हो जाते थे दिनारे।


निज सुविधा सुरक्षा कारणों से,

खलिहान रखते थे गांव किनारे।


रात में कोई बड़ा बूढ़ा सोता,या,

करते थे सुरक्षा नोकर के सहारे।


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