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Prateek Satyarth

Tragedy

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Prateek Satyarth

Tragedy

प्रेम...एक खूबसूरत फ़रेब

प्रेम...एक खूबसूरत फ़रेब

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बड़ी बेरंग थी ज़िंदगी अपनी,

सूनी सी पड़ी थी यह दुनिया अपनी,

जैसे रंग उतर चुका हो दीवारों से,

जैसे ख़ुशियाँ खो गई हो कहीं अपनी।


आवारा यह जीवन था,

प्रेम न कहीं रत्ती भर था,

गुलाब न देखे थे हमने,

काँटों से ही जुड़ा हमारा दामन था।


सबके हिस्से तो पूर्णिमा थी,

लेकिन हमारी अमावस ही होती थी,

रातों के अँधियारों में,

हमारी आँखें सुबक कर रोती थी ।


प्रेम न हमने जाना था,

न प्रेम को हमने माना था,

जब तलक न मिली थी तुम हमको,

प्रेम फ़ख़त एक फ़साना था ।


फ़िर एक रोज़ जब तुम आई,

संग अपने खुशहाली लाई,

उस रोज़ ही हमने जाना था,

कि खूबसूरत कितना यह ज़माना था ।


बीत गई अमावस, पूनम आई,

रात ढ़ली, अरूणिमा आई,

गहरी नींद से था मैं जाग गया,

जीवन में फ़िर तरूणाई छाई ।


जब साथ तू मेरे रहती थी,

मैं तब खुद को ज़िंदा लगता था,

जब सारी दुनिया थी रेंग रही,

मैं तब उड़ता परिंदा लगता था ।


अरसे से सूखे रेगिस्ताँ पर,

तपती धूप के आसमाँ पर,

तब झूम के बारिश आई थी,

जब सूनी सी मेरी दुनिया में,

तुम सौगातें लेकर आई थी।


ख़ुशियों का मौसम आया था,

न ग़म का कहीं कोई साया था,

बंजर हो चुके मेरे जीवन में,

कहीं कोई गुलाब खिल आया था।


पर मैं अन्जान रहा उस धोखे से,

जो मुझको मिलने वाला था,

मेरी ख़ुशियों से बना मेरा महल,

पल भर में बिखरने वाला था ।


प्यार की हद से आगे तक

प्यार मैं जिसको करता था,

वो औरों की भी 'जान' थी,

मैं 'जान' जिसको कहता था,


जान-जान के चक्कर में,

वो जान ही मेरी ले गई,

ख़ुदा बनाकर जिसको मैं,

अक्सर पूजा करता था ।


एक तेज़ पवन का झोंका आया,

और मैं तिनके सा बिखर गया,

समेट न पाया मैं खुद को,

इतने टुकड़ों में मेरा दिल बँट गया।


मैं तो प्यार का मारा हूँ,

अब यूँ ही भटकता फ़िरता हूँ,

प्रेम कभी न करना कोई,

सबसे यह कहता रहता हूँ ।


इस आग के दरिया में,

जब दूर तेरा साहिल होगा,

तू बीच में डूब मर जाएगा,

न तुझे कुछ हासिल होगा ।


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