माँ
माँ
मेरे जन्म से ही मेरी हमनवाँ हो तुम...
मैं फूल हूँ जिस बगीचे का उसकी बागबाँ हो तुम...
पंख फैलाते इस पंक्षी का सारा आसमाँ हो तुम...
मैं धन्य हूँ की मेरी माँ हो तुम !
दर्द भरे इस जीवन में खुशियों का कारवाँ हो तुम...
महफ़ूज़ जहाँ मैं रहता हूँ, वो आशियाँ हो तुम...
क्या तुम्हें पता है कि मेरा सारा जहाँ हो तुम ?
मैं धन्य हूँ कि मेरी माँ हो तुम !
जिन पगचिन्हों पर चलकर यह दुनिया मुझ तक पहुँचेगी, वो निशाँ हो तुम...
जिसका हर अल्फ़ाज वात्सल्य रस से सराबोर है, वो दास्ताँ हो तुम...
जो सदैव खुशनुमाँ रहे, वो समाँ हो तुम...
मैं धन्य हूँ कि मेरी माँ हो तुम !
मेरी मंज़िल जिसकी गोद में हैं, वो मुकाँ हो तुम...
जिसकी डाँट भी प्यारी लगती है, वो जुबाँ हो तुम...
मुझ फ़कीर का गुमाँ हो तुम...
मैं धन्य हूँ, कि मेरी माँ हो तुम !