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Jeetal Shah

Drama

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Jeetal Shah

Drama

बच्चों के उपर किताबों का बोझ

बच्चों के उपर किताबों का बोझ

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किताबों के तले,

हम दब ते जातें,


 ये पढ़ो वो पढ़ो,

बस हंमेशा सब की,

सुनते जाते,


कहां खो गया हमारा,

बचपन कयु है सब को,

हमसे अनबन,


माना पढ़ाई लिखाई भी,

है ज़रुरी,

पर बिना भारी किताब,

से भी हो सकती पुरी,


आज के इस युग में,

सब कुछ तो हो गया,

डिजिटल,

पर फिर क्यु भारी,

किताबें हम लेकर,

जाए स्कूल,


नाज़ुक सी हमारी,

काया,

सब के दिलों को,

कर देती माया,


काश हम भी इस,

बोझ से कभी,

मुक्त हो पाते,


तो हम भी कभी,

अच्छे इन्सान बन पाते।


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