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देख-ए-इंसान

देख-ए-इंसान

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देख-ए-इंसान, तेरे देश का हाल क्यूँ बदहाल है।

हाल ये है कि, तेरे इंसान होने पर भी सवाल है।।


अब वेदों और ग्रंथों तक ही, औरत देवी का अवतार है,

बस नवरात्रों में ही कंजक रूप में, बच्चियों का सत्कार है,

वरना औरत क्या और बच्ची क्या, सब तो तेरी हवस का शिकार हैं।


उसके जिस्म को कुचलकर, उसकी रूह को रौंदकर,

तू समझता ख़ुद को इंसान है।।

देख-ए-इंसान, तेरे देश का हाल क्यूँ बदहाल है।

हाल ये है कि, तेरे इंसान होने पर भी सवाल है।।


उस पर भी आलम ये है कि,

वो बस बन कर रह गई निर्भया, तू फिर भी ना हुआ शर्मिंदा,

उस पर है परिवार की इज़्ज़त का शिकंजा, तू फिर भी आज़ाद परिंदा,

तू घूम रहा खुले आम और, वो घर में भी बदनाम।।


उसकी इज़्ज़त को मिट्टी और, रूह को छलनी कर घूम रहा,

तू मस्त मदहोश नौजवान है, तू समझता ख़ुद को इंसान है।।

देख-ए-इंसान, तेरे देश का हाल क्यूँ बदहाल है।

हाल ये है कि, तेरे इंसान होने पर भी सवाल है।।


क्यूँ कुकर्म करते तुझे डर नहीं लगता,

क्यूँ तेरी आत्मा पर तुझे बोझ नहीं लगता,

क्यूँ भूल जाता है कि तू भी है एक औरत कि संतान,

क्यूँ उसके दूध और संस्कारों को करता है बदनाम,

क्यूँ उसकी ममता का जनाजा निकालता है सरेआम।


तेरी दरिंदगी को देखकर, उस माँ की कोख पर भी सवाल है,

तू समझता ख़ुद को इंसान है।

देख-ए-इंसान, तेरे देश का हाल क्यूँ बदहाल है।

हाल ये है कि, तेरे इंसान होने पर भी सवाल है।।


तू भी किसी बच्ची का बाप होगा,

तेरी हैवानियत सुन, उसका भी कलेजा राख होगा,

तेरी गोद में उसको बेड़ियों-सी घुटन होगी,

वो छुप जाएगी माँ के आँचल में, जब-जब उसे तेरे आने की आहट होगी।


तुझे अपना पिता कहना उसकी पवित्रता पर सवाल है,

तू समझता ख़ुद को इंसान है।।

देख-ए-इंसान, तेरे देश का हाल क्यूँ बदहाल है।

हाल ये है कि, तेरे इंसान होने पर भी सवाल है।।


राखी के धागे की मज़बूती कम लगने लगती है,

जब-जब किसी भाई की बहन की आबरू मरती है,

यूँ तो धागा भाई की रक्षा करेगा, लेकिन क्या होगा जब भाई किसी का भक्षक बनेगा।


है इतना ज़ोर अगर उसे डोर में, तो इस बार से बहन की कलाई पर बाँधा जाएगा,

देश पर लुटने वाले शहीदों को तो, सदा ही इज़्ज़त की सलामी मिलेगी,

पर देश को लूटने वाले भक्षकों से, क्या पता इसे डोर से ही आज़ादी मिलेगी।


बचा ना पाया ये धागा भी गर उसकी आबरू , तो रक्षा के इस बंधन पर भी सवाल है,

तू समझता ख़ुद को इंसान है।

देख-ए-इंसान, तेरे देश का हाल क्यूँ बदहाल है।

हाल ये है कि, तेरे इंसान होने पर भी सवाल है।।


जब तेरी अर्द्धांगिनी तेरे घर की लाज है,

फिर कैसे किसी और के घर की लाज को तू चोट पहुँचाता है,

ये दर्द का दरिया यहीं रोक दे,

जो ना रुका- तो तेरे घर की लाज भी इसमें डूब जाएगी,

इस हवस की आग को मिट्टी में झोंक दे,

जो ना झोंका - तो तेरे घर की लाज की भी आहुति चढ़ जाएगी।


भस्म हो जाएगा सुखी संसार, तो सात फेरों पर भी सवाल है,

तू समझता ख़ुद को इंसान है।

देख-ए-इंसान, तेरे देश का हाल क्यूँ बदहाल है।

हाल ये है कि, तेरे इंसान होने पर भी सवाल है।।


देख ए इंसान । देख ए इंसान । देख ए इंसान ।।


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