कहां थी मैं गलत...?
कहां थी मैं गलत...?


हां चुना मैंने मेरा अंधेरा कमरा
कि कोई देखे ना मुझे
कोई सुने ना मुझे कोई पहचाने ना मुझे,
क्या मैं वहां गलत थी ?
या जो देखें सबके साथ
हँसती खेलती ज़िंदगी के सपने
क्या मैं वहां गलत थी ?
नहीं आने दिए कुछ दर्द सबके सामने
क्या मैं वहां गलत थी ?
या सबके सामने जो रो दिया और खुद को
कमज़ोर दिखाया क्या मैं वहां गलत थी ?
हर एक के जज्बात की फ़िक्र की
क्या वहां गलत थी ?
या कभी कोई दिल की बातों का
ज़िक्र ही नहीं किया क्या मैं वहां गलत थी ?
दूसरों की बातों को रोककर जो तमीज भुल गईक्या
मैं वहां गलत थी ?
या तमीज संभालते संभालते सुना सबकी बातों को
और खुदको ही खुद के नज़रों में गिराया
क्या मैं वहां गलत थी ?
बेझिझक होकर जो दिया सबका साथ
क्या मैं वहां गलत थी ?
या खुदगर्ज बनके किया खुद से ही प्यार
क्या मैं वहां गलत थी ?