ज़िंदगी
ज़िंदगी
ऐ जिंदगी,
तेरा शुक्रिया।
कभी हंसती बुदबुदाती,
कभी रोती बिलबिलाती।
कभी सवाल करती,
कभी मुझको सिखाती।
कभी स्याह रात गई,
कभी भरे रंग कई।
कभी मायूस बैठ गई,
कभी करती कोशिशें नई।
कभी झरनों जैसी अधीर बहती,
कभी शांत सागर समान थमती।
कभी दुनिया जहां की कहती,
कभी लंबी खामोशियों में रमती।
कभी खट्टी-मीठी या कड़वी बात,
कभी ऊपर नीचे होते रहे हालात।
कभी सपनों की दुनिया से मुलाकात,
कभी हकीकत को देते रहे मात।
ज़िंदगी तूने मुझे क्या क्या नहीं दिखाया,
लेकिन तुझे जीने में मज़ा बड़ा आया।