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Mayank Verma

Drama Inspirational Children

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Mayank Verma

Drama Inspirational Children

पिता

पिता

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सोचा के कुछ लिख दूं आपके लिए,

पर मौका ही कब दिया कुछ कहने के लिए।


मन में क्या चल रहा है कब बताया?

सब ठीक है या कुछ दिक्कत हमें कब जताया?


कब पता चलने दिया कि पैसे कहां से आते हैं,

सबकी अनोखी फरमाइशें कैसे पूरी कर पाते हैं।


पता नहीं आपके पास खबर कहां से आती थी,

हर ज़रूरत मांगने से पहले पूरी हो जाती थी।


मैं आंख ही मलता था तब तक उठकर,

जब आप काम पर निकलते थे तैयार होकर।


आपकी मेहनत से मैंने घर को बढ़ते देखा है,

स्याह रात से सुनहरी सूरज होते देखा है।


शाम से कान दरवाज़े पर लग जाते थे,

आहट होते ही टीवी बंद, पढ़ने लग जाते थे।


आपके वापस आते ही पहले सूटकेस थामते थे,

 'आज क्या नया आया' सभी मिलकर झांकते थे।


याद है जब भरी थी बैग में अपनी सालों की कमाई,

मेरे कॉलेज एडमिशन के लिए सारी दौलत गंवाई।


जब भी देखा आपने मुझे मुश्किलों में फंसते हुए,

मां को कर दिया इशारा मुस्कुराकर हंसते हुए।


आपकी मेहनत और पसीने का ही है ये असर,

कि बरकत से भरा खुशियाँ संजोए है ये घर।


अच्छा मुझे भी लगता है जब सीना फुलाते हो।

जब गुरूर से मुझे, अब सबसे मिलवाते हो।


डांटा तो सबने पर उन सबका इतना डर नहीं था,

आपकी तेज़ आवाज़ सा किसी और का असर नहीं था।


आपकी डांट का मकसद अब समझ आता है,

जब बच्चों के लिए मैं भी यही तरीका अपनाता हूं।


हमारी सहूलियतों के लिए हर मौसम जलते रहे,

हमें आगे बढ़ाने के लिए निरंतर चलते रहे।


ज़रूरत, ख्वाहिश या ज़िद, जो चाहा मिला हमें,

सौभाग्य है ये हमारा, कि ऐसा 'पिता' मिला हमें।


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