रिश्ते पुराने
रिश्ते पुराने
क्यूं बावरा हुआ जा रहा है?
ज़रा संभल, जज़्बातों को काबू कर।
ये वो सतरंगी दुनिया नहीं,
जो तूने सपनों में देखी थी।
यहां वो प्रीत नहीं मिलेगी,
जो तूने अपनों में सोची थी।
वैसे तू क्यूं उनको कोसता है?
सारे इल्जाम उन्हीं पर थोपता है।
ये वही लोग हैं जो तुझ पर जान छिड़कते थे,
रात को तेरे साथ सोने के लिए आपस में लड़ते थे।
कभी सोचा की ये तुझसे क्या चाहते हैं,
आज क्यूं नजर चुरा के भागते हैं।
खोल अलमारी, ढूंढ उन खतों को,
जहां भी तू गया, ये पूछते थे उन पतों को।
इनके बुरे वक्त में तू कब इनका हाथ थामे खड़ा था,
बेमानी किसी और ही दौड़ में पड़ा था।
तेरी पहली कमाई से सूट के सपने सजाए थे जिस बहन ने,
शादी भी हो गई उसकी, दो बच्चे भी हैं।
तूने तो शक्ल भी नहीं देखी उनकी आज तक,
पर फिक्र मत कर, अच्छे भी हैं।
याद हैं वो नाना, दादा, मामा,
आधे तो अब गुजर चुके हैं।
गांव के वो कच्चे मकान,
अब पक्के होकर सुधर चुके हैं।
जो भरी दोपहरी में तेरे साथ आम तोड़ते थे,
आज दो वक्त की रोटी को भागते हैं।
फिर भी भूले भटके तू कभी पहुंचे अगर,
तो आप बीती सुनाने को सारी रात जागते हैं।
हां, कह दिया होगा कुछ गुस्से में,
पर प्यार कम नहीं हुआ है।
तू बैठा है वहीं दिल के कोने में,
वो हिस्सा खाली नहीं हुआ है।
हाथ उठा, आवाज़ लगा, बात कर,
ये दुनिया अभी भी सतरंगी है,
पर रंग तुझे भी भरना है।
हां, हो गई गलती, अब आगे बढ़,
बावरा मन नहीं तू है,
जो करना है, तुझे ही करना है।