बही-खातों का हिसाब
बही-खातों का हिसाब
मेरी राह में सुबह से शाम करने वाले,
अब मेरी रातों का हिसाब मांगते हैं।
मेरी खामोशियों में भी मतलब ढूंढने वाले,
'उस दिन' कही बातों का हिसाब मांगते हैं।
बीच राह मुंह फेर के जाने वाले,
अपनी मुलाकातों का हिसाब मांगते हैं।
मुझ पर सब कुछ वारने वाले,
मेरे बही - खातों का हिसाब मांगते हैं।
जिसके हर ग़म में आंसू बहाए मैंने,
मेरी मुस्कुराहटों का हिसाब मांगते हैं।
जिसकी आरज़ू के लिए जहां लुटाए मैंने,
आज औकातों का हिसाब मांगते हैं।
जिसके तंज़ सहे, कड़वे घूंट पिए मैंने,
बिगड़े हालातों का हिसाब मांगते हैं।
बर्बाद किए जो अरमानों के महल सजाए मैंने,
न जाने किस मुंह से बरकतों का हिसाब मांगते हैं।