सुनहरी सुबह का इंतज़ार
सुनहरी सुबह का इंतज़ार


आइना मेरी नज़रों से देखती हो,
मुझे सोच के सजती संवरती हो।
दिखती हैं मुझे वो सारी कोशिशें,
चाहे जितना भी छुपा के करती हो।
तुम्हारे टूटे फूटे अल्फाजों में लिखी,
डायरी की कविता आधी अधूरी,
बयां करती है फिर भी हर जज्बात,
मन के एहसासों में सराबोर पूरी।
मेरे संग किसी और ही रंग में होती हो,
आजकल ही नहीं, सालों के सपने संजोती हो।
मेरी तब्दीलियां तो मुझे रोज़ गिनाती हो,
सोचो अब तुम भी खुलके हंस पाती हो।
रेत सी फिसलती मेरे हाथों से,
कैसे समेटूं तुम्हें अपने आगोश में।
लहरों सी थिरकती, हंसती, मचलती,
साथ तुम्हारे कैसे रहूं अपने होश में।
पल पल में सालों की बातें करना,
सारी रात का एक पल में गुज़रना।
आंखों आंखों में हर बात कहना,
आसमान में सूरज का चांद में बदलना।
इंतज़ार है उस सुनहरी सुबह का,
जब मेरा नाम तुम्हारी पहचान हो।
और कैसे बयां करूं अपनी हसरतें,
बस जान लो कि तुम मेरी जान हो।