मैं भीख नहीं माँगता
मैं भीख नहीं माँगता
तुम चाहो तो सो सकते हो
मेरा मन विचलित सा है
मेरे मन के युद्ध मुझे
ना सोने देंगे।
सुबह-सुबह नन्ही दस्तक सुन
जब मैंने दरवाजा खोला
फटे हाल में था एक बालक
हाथ फैलाकर मुझसे बोला,
माई मुझको कुछ तो दे दे
मैंने बोला भाग यहाँ से
सुबह सुबह ही आ जाते हो
काम धाम कुछ और नहीं क्या
भीख माँग कर ही खाते हो
शांत भाव एकाग्र चित्त से
पूजा करने बैठी थी
और तभी तुम कूड़ेदान से
दरवाजे पर खड़े हो गए।
हाथ में पूजा की घंटी ले
कुछ नफरत से मैंने बोला
गया नहीं क्यों अब तक तू
खड़ा हुआ है हाथ पसारे।
मेरा जीवन बहुत व्यस्त है
वक्त नहीं है पास हमारे
सुनते ही कुछ अटक गया
पल में इतना सिकुड़ गया।
फैले हाथों को पीछे कर
चला गया वह चला गया
नन्हे पैरों की ना जाने
कितनी आहट छोड़ गया।
हाथ में पूजा की घंटी ले
बैठे-बैठे सोच रही था
बालक वह भूखा ही था
पर रोटी तो ना माँगी थी।
बोला था कुछ तो दे दे
मेरे पास बहुत कुछ था
उसको क्या दे सकती थी
उस पल यही सोचना था।
लेकिन शायद
वक्त नहीं था
मेरे घर पर जाने कितनी
उम्मीदों से आया था
मुझे दिखा ने हाथ की
मिटती रेखाएं ही लाया था।
अपनी आँखों की पीड़ा से
मन में कितने छेद कर गया
चला गया वह चला गया
कुछ और भी अंदर टूट गई मैं।
वक्त हमारे पास बहुत है
लेकिन मन संवेदन शून्य है
पूजा की घंटी की टन टन
लगता है कुछ मलिन मंद है।
पूजा के आसन पर
बैठे बैठे सोच रही थी
उस का घिनौना पन
कुछ हद तक कम हो सकता था
उसका भूखा पेट शायद
कुछ हद तक भर सकता था।
मेरे घर की हद में
कुछ हद तक आ सकता था
मेरी ममता के साए में
कुछ पल तो रह सकता था।
उसके तार तार कपड़ों में
कुछ पैबंद लगा पाती
उसके पैरों के छालों का
कुछ मरहम हो सकता था।
लेकिन शायद वक्त नहीं था
मेरे पास बहुत कुछ था
अपने मैले कपड़ों की दुर्गंध
छोड़कर चला गया वह।
कुछ और भी अंदर टूट गई मैं
पूजा के आसन से उठ कर
हाथ जोड़कर खड़ी हुई है।
तुम सुन सकते हो तो सुन लो
पूजा की घंटी की टन टन
मेरे मन के युद्ध
मुझे तेरी पूजा ना करने देंगे।।