कभी चलता था पूरे घर का खर्चा जिस अकेले की तनख़्वाह से .................... कभी चलता था पूरे घर का खर्चा जिस अकेले की तनख़्वाह से ....................
जो खुद तकलीफ में रहकर, बच्चों की हर ज़रूरत पूरी करता है वो पिता है...! जो खुद तकलीफ में रहकर, बच्चों की हर ज़रूरत पूरी करता है वो पिता है...!
तुम्हारे हाथों का स्पर्श अब भी मेरी तुम्हारे हाथों का स्पर्श अब भी मेरी
पापा की हथेलियां थपकी स्नेह की जब भी कभी कदम डगमगाये हौसले से उनके आने वाला पल मुस्कराये ! पापा की हथेलियां थपकी स्नेह की जब भी कभी कदम डगमगाये हौसले से उनके आने वाला ...
पापा…. मुझे डर लगता है भीड़ में आपकी ऊँगली ना छूट जाए ! पापा…. मुझे डर लगता है भीड़ में आपकी ऊँगली ना छूट जाए !
विदा होती बेटी...। विदा होती बेटी...।