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किरण वर्मा

Drama

2.5  

किरण वर्मा

Drama

पिता

पिता

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तुम्हारे हाथों का स्पर्श

अब भी मेरी

हथेलियों पर रहता है

जब इन्हें थाम तुम

चलना सिखाते थे

मम्मी की डाँट से बचाकर

अपने पीठ पीछे छुपाते थे

इन्हें ही थामकर मुझे

सड़क की ख़राब हालत

बताकर बचना कहकर

गोद में उठाते थे

अब सड़क के हालात

मैं ख़ुद ही समझ जाती हूँ

मैं अब भी

अकेले चलते हुए

अपने कदमों तले

तुम्हारे पैरों के निशान

महसूस कर अपने साथ पाती हूँ

अब भी लगता है

मेरे छोटे छोटे क़दम

तुम्हारे क़दमों की

रफ़्तार को थाम

लेना चाहते हो

मैं चलते-चलते ही

अपने चलने की

रफ़्तार को बढाकर

तुम्हारी उस याद रही

रफ़्तार से मिलाती हूँ

कभी-कभी अपनी

नादानियों पर तुम्हारी हंसी

को याद कर मैं चूम लेती हूँ

अपनी हथेलियों पर रखे

तुम्हारे स्पर्श को और

फिर कुछ देर तक मुस्कुराती हूँ।


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