STORYMIRROR

yadav vikrant

Drama Tragedy

2.5  

yadav vikrant

Drama Tragedy

मूल मंत्र

मूल मंत्र

2 mins
14.6K


कुछ पाने की उम्मीद लेकर,

अंधेरे में ही चल देता है वो।

आशाओं के पथ पर इंतजार करते - करते,

कुछ पाने की चाहत में कुछ खो देता है वो।


अन्धकार भरी रातों में

चांदनी की उम्मीद करता है,

शायद वो इस बात से परे है कि

"कहीं ओस से भी घड़ा भरता है।

अपनी किस्मत को कोसते हुए

मर मर के जीता है वो।

कुछ पाने की उम्मीद लेकर,

अंधेरे में ही चल देता है वो।

आशाओं के पथ पर इंतजार करते करते,

कुछ पाने की चाहत में कुछ खो देता है वो।


दरवाजे की चौखट पर

गरीबी की दस्तक बनी रहती है,

उसकी इस अवदसा को देखकर

ये भी दिल खोल के हंसती है।

इस बेरहम पेट की खातिर,

दर दर भटकता है वो।

कुछ पाने की

उम्मीद लेकर,

अंधेरे में चल देता है वो।

आशाओं के पथ पर इंतजार करते करते

कुछ पाने की चाहत में कुछ खो देता है वो।


उम्र के इस पड़ाव में लाठी ही इक सहारा है,

मझदार में डूबे व्यति को बस

दिखता इक किनारा है।

जीवन की रंगीन रह पर,

थककर बैठ जाता है वो।

कुछ पाने की उम्मीद लेकर

अंधेरे में ही चल देता है वो।

आशाओं के पथ पर इंतजार करते करते

कुछ पाने की चाहत में कुछ खो देता है वो।


आशा, उम्मीद और इंतजार वो एक तंत्र है,

जो गरीबों के जीने का महामूल मंत्र है।

कुछ पाने की उम्मीद लेकर

अंधेरे में ही चल देता है वो।

आशाओं के पथ पर इंतजार करते करते

कुछ पाने की चाहत में कुछ खो देता है वो।


Rate this content
Log in

More hindi poem from yadav vikrant

Similar hindi poem from Drama