सवेरा
सवेरा
आंचल में धूप लिए,
मुट्ठी में उम्मीद और आस लिए,
सवेरा आहिस्ता आया,
चुपके दबे पांव आया,
आंखों में नींद अभी बाकी थी,
ख्वाबों और खयालो की दास्तां अभी बाकी थी,
घड़ी की सुई को सब ना था,
वक्त मानो पंख लगा कर उड़ रहा था,
पंखुड़ियों की सेज पर ओस की बूंद सोई थी,
एक लंबे सफ़र के बाद मानो
किसी मुसाफिर ने चैन की सांस ली थी।