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AVINASH KUMAR

Drama

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AVINASH KUMAR

Drama

उम्र का असर

उम्र का असर

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455

रफ्ता रफ्ता वक्त बीतता रहा

बचपन से जवानी फिर बुढापा

आता रहा........

हम सोच मे बैठे रहे कुछ इस कदर

आखिर इंसान जीवन भर

क्या कमाता रहा...........


तू न डर इंसान अब ये कैसी है फ़िक्र

उम्र ढल जायेगी और बस यादें रह जायेंगी

कभी रूलाएंगी और कभी ये हंसा जाएंगी

जिंदगी यूं ही बहुत कुछ सीखा जाएगी

तेरी ढलती उम्र और बुढ़ापे का ज़िक्र।


कैसा अब ये उम्र का पड़ाव है

ज़िन्दगी से होता जाता अब ये लगाव है

दरकती हैं उम्मीदें काश को लेकर तनाव है

काश ऐसा होता काश वैसा होता

यही तो बस मनमुटाव है।

तेरी ढलती उम्र और बुढ़ापे का ज़िक्र..


अनुभवों की पुस्तक और अतीत का साया

ये दुनियां लगे अब बस इक मोह माया

निस्वार्थ प्रेम और निर्मल काया

बनी रहे सिर पर बस ईश्वर की छाया

तेरी ढलती उम्र और बुढ़ापे का ज़िक्र…


जीवन ये क्षण-भंगुर पल-पल ढलता जाए

बचपन भी दूर खड़ा नज़र आये

जीवन संध्या अब इशारे कर बुलाये

कुछ अच्छा कर इंसान तू क्यों इठलाये

पाप-पुण्य सब तूने यहीं तो कमाये

तू कर प्रायश्चित् काहे को घबराये


तेरी ढलती उम्र और बुढ़ापे का ज़िक्र

ऐ बंदे ये जीवन है बड़ा अनमोल

रिश्ते यूं अपनी मैं से न तोल

मिट जायेगी ये काया इक दिन माटी के मोल

क्या लेकर जायेगा इस धरा से कुछ तो बोल

तेरी ढलती उम्र और बुढ़ापे का ज़िक्र…


निर्बल काया और स्वास्थ्य भी कमज़ोर है

मन में मचा अब ये कैसा शोर है

ज़िम्मेदारियों का निरंतर यूं बढता सा बोझ है

थकान से ये तन-मन भाव विभोर है


तेरी ढलती उम्र और बुढ़ापे का ज़िक्र

निश्चल प्रेम और निस्वार्थ भावना

तू कर इंसां अब यही कामना

ईश्वर से हो जब भी सामना

पूरी हों सब तेरी मनोकामना


क्यों न कुछ ऐसा कर जाएं

सभी को प्रेम भाव से हम याद आयें

तेरी ढलती उम्र और बुढ़ापे का ज़िक्र

तू न डर इंसान अब ये कैसी है फ़िक्र।


ये उम्र का असर है या बुढ़ापे की सनक

यही अक्सर मै गुनगुनाता रहा

हाथ में जो बचा है वक्त उसमें

मरने के लिए क्या बचाता रहा।


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