साझा
साझा
गुमसुम हैं जो बोल तुम्हारे
सन्नाटे हैं मित्र हमारे
इस दीवार को आधा करते हैं
चलो कुछ साझा करते हैं।
सपने हैं जो भाग रहे
ठहरा यहां कौन रहे ?
राहों को बांटा करते हैं
चलो कुछ साझा करते हैं।
इच्छाओं की नहीं है सीमा
अपनेपन का नहीं है बीमा
ऊंचा उड़ने के खातिर
विश्वाश का मांझा रखते हैं
चलो कुछ साझा करते हैं।
जिनको नहीं भाए हैं यार
कड़वा लगे जिन्हें परिवार
वो रस्तों को नापा करते हैं
चलो कुछ साझा करते हैं।
ऐसी कोई नहीं मजबूरी
ओझल जो ना होती दूरी
खाई को थोड़ा भरते हैं
चलो कुछ साझा करते हैं।
