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Nishant Singh

Inspirational

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Nishant Singh

Inspirational

मेरी हिंदी भाषा

मेरी हिंदी भाषा

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नवयुग चढ़ता, रोज बदलता 

बदली जग की अभिलाषा।

मन की पीड़ा मिटा रही है

मेरी हिंदी भाषा।


तू - तड़ाक, आप सब इसमें

संस्कार की सारी किस्में 

फिर भी निभती चली ये रस्में।

इसमें नवरस है आता

मेरी हिंदी भाषा।


व्याकरण इसका सधा हुआ

मात्राओं में बंधा हुआ।

छंद, रूप, अलंकार में लिपटी

है इसकी एक एक शाखा

मेरी हिंदी भाषा।


साहिल से लेकर अम्बर तक

राजनीति आडंबर तक

कवियों के बाण चलाय रही।

खुद में क्षितिज समाय रही

हां खुद में क्षितिज समाय रही।


शब्द कई हैं ठेठ देहाती

कुछ को बोलने में शर्म भी आती।

गांव गांव और कोलिया कोलिया 

मिलय सम्मिलित मनवासा

मेरी हिंदी भाषा।

ये है मेरी हिंदी भाषा।


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