STORYMIRROR

Nishant Singh

Abstract

2  

Nishant Singh

Abstract

असफलताओं का बोझ

असफलताओं का बोझ

1 min
164


जब असफलताओं का बोझ

संभाला नही जाता तब किस्मत का

सिक्का उछाला नही जाता


मृत नही तेरी आत्मा

देख रहा परमात्मा

जला रातों को समर में

बन जा तू विश्वात्मा


आंख अब जो भीगी है

सीख यही सीखी है

कांटो भरी राह में बटोही 

धूप बड़ी तीखी है


तोड़ दे सीमाओं का घेरा

ला तू अपना अब सबेरा

अडिग कर समय से बखेड़ा

पा ले अब तू लक्ष्य तेरा


इच्छाओं को त्याग

हो प्रतिबद्ध तू

हार कर हारा नहीं

कर दे अब ये सिद्ध तू


मलिन मन की कुंठाओं

को त्याग तू

दौड़ में शामिल नहीं

जीतने को भाग तू


सुन गैरों के ताने

हो नही नाराज तू

अपना भाग्य खुद लिखे जो

है वही महाराज तू


विश्राम न विलंब कर

विफलतओं पर विलाप बंद कर

ज्वालामुखी सी शक्ति तुझमें

जीवन समर में द्वंद कर


कौन कहे तुझसे ओ पथिक

प्रस्तर तोड़ पथ निकाला नहीं जाता

जो तेरे गले हार का निवाला नहीं जाता

मत मान की रेगिस्तान से

पानी निकाला नहीं जाता


जब हार का बोझ संभाला नहीं

जाता

तब किस्मत का सिक्का उछाला नहीं

जाता।



    


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract