रिटायर्ड आदमी का दुख
रिटायर्ड आदमी का दुख
Retirrment
आदमी पढता
नौकरी करता
शादी करता
पत्नी आती
बच्चे होते
उन्हें पालता
घर बनाता
वाहन लाता
सब सुविधा करता
परिवार का पालन करता
मेहनत कश जीवन जीता
नहीं कोई शिकायत करता
सबकी शिकायत का निवारण करता
सबकी जरुरत पूरी करता
यूँ ही उम्र गुजरती
रिटायर्ड होता
सोचता अब शांति से
आराम करेगा
सब यही कहते
बधाई देते
वरिष्ठ जन स्वागत करते
सबको अच्छा लगता
पत्नी भी खुश, बच्चे भी खुश
समय गुजरता,
अब दीखता सब जो जीवन में नहीं देखा
कोशिश करता टोकता
कोई नहीं रुकता
आये दिन नोक झोंक होती
करते सब अपनी मनमानी
सबको होती परेशानी
यही दुःखद होता
पत्नी कहती
दिन भर घर में बैठे रहते हो
कुछ करो, घर से निकलो
घर में बैठे बैठे कुर्सी तोड़ते हो
कहीं कुछ करोगे दो पैसा कमाओगे
तो काम आएगा
बच्चे कहते पापा कुछ करो
निकलो बाहर दुनिया बदल गई है
आखिर कब तक पड़े
आराम करते रहोगे
यही रोज की चिक चिक
रोज की खेंचा तानी
आदमी को करती परेशानी
जो सोचा वो नहीं होता
करता फिर वही जो नहीं
सोचा नहीं किया
वही काम वही काम
काम ही काम
ज़िन्दगी होती हराम
एक रिटायर्ड आदमी का दुख।