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Deepak Shrivastav

Abstract

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Deepak Shrivastav

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रिटायर्ड आदमी का दुख

रिटायर्ड आदमी का दुख

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Retirrment

आदमी पढता

नौकरी करता

शादी करता

पत्नी आती


बच्चे होते

उन्हें पालता

घर बनाता

वाहन लाता

सब सुविधा करता

परिवार का पालन करता

मेहनत कश जीवन जीता


नहीं कोई शिकायत करता

सबकी शिकायत का निवारण करता

सबकी जरुरत पूरी करता

यूँ ही उम्र गुजरती

रिटायर्ड होता

सोचता अब शांति से

आराम करेगा 


सब यही कहते

बधाई देते

वरिष्ठ जन स्वागत करते

सबको अच्छा लगता

पत्नी भी खुश, बच्चे भी खुश

समय गुजरता,


अब दीखता सब जो जीवन में नहीं देखा

कोशिश करता टोकता

कोई नहीं रुकता

आये दिन नोक झोंक होती

करते सब अपनी मनमानी

सबको होती परेशानी

यही दुःखद होता


पत्नी कहती

दिन भर घर में बैठे रहते हो

कुछ करो, घर से निकलो

घर में बैठे बैठे कुर्सी तोड़ते हो

कहीं कुछ करोगे दो पैसा कमाओगे

तो काम आएगा

बच्चे कहते पापा कुछ करो

निकलो बाहर दुनिया बदल गई है


आखिर कब तक पड़े

आराम करते रहोगे

यही रोज की चिक चिक

रोज की खेंचा तानी

आदमी को करती परेशानी

जो सोचा वो नहीं होता

करता फिर वही जो नहीं

सोचा नहीं किया


वही काम वही काम

काम ही काम

ज़िन्दगी होती हराम

एक रिटायर्ड आदमी का दुख।


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