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Shailaja Bhattad

Abstract

4.5  

Shailaja Bhattad

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अफवाहें

अफवाहें

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सच्चाई के कानों को भी सहला आती है।

अफवाह है कि बस दौड़ लगाती है।


जिसका दीपक से गहरा नाता है।  

 वही वसुधैव कुटुंबकम का सुख पाता है।


जिंदगी धूप-छांव का खेल है। 

 किसी का धूप से तो किसी का छांव से मेल है।


अपने हो तो विपत्ति टल जाती है।  

 रिश्तो में नई जान आती है। 


जहां अफवाहों का बाजार सजा हो।

 फिर असली गुनहगार को कैसे सजा हो।


सात सुरों में बंधा हर सुर सुरीला है।

 बातों में मधुरता रिश्तों की गरिमा है।


अपनों से घर में सभी लडें हैं।  

 पराई धरती पर लेकिन साथ खड़े हैं।


हमारे सैनिक हममें जीने का जज्बा भरते हैं।

 इसीलिए हमारे कदमों से उत्थान के स्वर गूंजते हैं।


खिड़की दरवाजे खुले हो तो रिश्ते सांस लेते हैं।

 वरना एक कमरे को भी कई हिस्सों में बांट लेते हैं।


 हम तो समझे वह हाथ थामने आए हैं ।

किसे पता था पल्ला झाड़ने आए हैं।


बगल में गर खंजर हो।

 खुशनुमा कैसे कोई मंजर हो।


तंग गलियों में,

 हवा भी कहाँ सांस लेतीं है।

 अफवाहों के बाजार में,

  सच की घुटन महसूस होती है।


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