इसलिए कि वटवृक्ष मान चुका था हार इंसानी रिश्तों की मानिंद। इसलिए कि वटवृक्ष मान चुका था हार इंसानी रिश्तों की मानिंद।
जब मेरे अपनों ने मेरा साथ छोड़ा।, हां, तब मैं हारी थी। जब मेरे अपनों ने मेरा साथ छोड़ा।, हां, तब मैं हारी थी।
कैसे भटक नहीं जाते कुछ ज़माने का डर दिखता है। कैसे भटक नहीं जाते कुछ ज़माने का डर दिखता है।
आतंकवादीयों के साथ उनके गंदे कारनामों की नापाक दास्ताँ ? आतंकवादीयों के साथ उनके गंदे कारनामों की नापाक दास्ताँ ?
देश के भविष्य को हर हाल में नशे से मुक्त करना है। देश के भविष्य को हर हाल में नशे से मुक्त करना है।
भारत माता का दुखित स्वर , जलियांवाला बाग – 1919 से पुलवामा – 2019 तक भारत माता का दुखित स्वर , जलियांवाला बाग – 1919 से पुलवामा – 2019 तक